जब तें रामु ब्याहि घर आए – रामचरितमानस (Jab Te Ram Bhayai Ghar Aaye)

परम पूज्य संत श्री डोंगरे जी महाराज कहा करते थे जिन परिवारों मे अयोध्या काण्ड के मंगलाचरण की यह चौपाईयाँ प्रतिदिन गाईसुनी और आचरण में लाई जाती हैं उन घरों से दरिद्रता दूर भाग जाती है और सुख, समृद्धि, शांति का आगमन होता है।

॥ दोहा॥
श्री गुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥

॥ चौपाई ॥
जब तें रामु ब्याहि घर आए ।
नित नव मंगल मोद बधाए ॥
भुवन चारिदस भूधर भारी ।
सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी ॥1॥

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई ।
उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई ॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती ।
सुचि अमोल सुंदर सब भाँती ॥2॥

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती ।
जनु एतनिअ बिरंचि करतूती ॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी ।
रामचंद मुख चंदु निहारी ॥3॥

मुदित मातु सब सखीं सहेली ।
फलित बिलोकि मनोरथ बेली ॥
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ ।
प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ ॥4॥
[ श्री रामचरितमानस: अयोध्या काण्ड: मंगलाचरण]

इस पाठ के प्रतिदिन करने के उपरांत भी दरिद्रता दूर नही होती है अथवा सुख, समृद्धि, शांति नहीं मिलती, इसका अर्थ यही है कि भक्त इसका सिर्फ गायन तो कर रहे हैं परंतु उसे अपने जीवन में उतार नही रहे हैं।

सभी को अयोध्या जैसा वातावरण तो चाहिए, परंतु अयोध्या बनाने का सोच नही रहा है। सभी को घर मे पुत्र राम चाहिए परंतु कोई कौशल्या / दशरथ नहीं बनाना की सोच रहा।

किसी भी सिद्ध मंत्र से फल न प्राप्त होने का मूल कारण यही है कि हम मंत्र की मूल भावना को चरितार्थ नहीं कर रहे हैं अपितु सिर्फ उसका बेमन से अनुसरण कर रहे हैं।

प्रथम दोहा श्री गुरु चरन सरोज रज.. प्रसिद्ध श्री हनुमान चालीसा का भी प्रथम दोहा है।